Ujjain:श्रीकृष्ण-सुदामा मैत्री स्थल; गांव नारायणा का वो स्थान जहां भगवान के हिस्से के चने खा गए थे सुदामा – The Friendship Place Of Shri Krishna-sudama Is In Village Narayana Of Ujjain

Ujjain:श्रीकृष्ण-सुदामा मैत्री स्थल; गांव नारायणा का वो स्थान जहां भगवान के हिस्से के चने खा गए थे सुदामा – The Friendship Place Of Shri Krishna-sudama Is In Village Narayana Of Ujjain

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The friendship place of Shri Krishna-Sudama is in village Narayana of Ujjain

गांव नारायणा में स्थित श्री कृष्ण-सुदामा का मैत्री स्थल।
– फोटो : Amar Ujala Digital

विस्तार


मथुरा, वृंदावन की तरह धर्मधानी उज्जयिनी भी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही है। जिले की महिदपुर तहसील का गांव नारायणा आज भी इस बात की गवाही दे रहा है। गांव में पांच हजार साल बाद भी भगवान श्री कृष्ण और सुदामा द्वारा जंगल से लाई गई लकड़ियां मौजूद हैं। वर्षों से यह स्थान श्रीकृष्ण-सुदामा के मैत्री स्थल के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां भगवान कृष्ण व सुदामाजी का भव्य मंदिर है।

देशभर से लाखों कृष्ण भक्त प्रतिवर्ष इस दिव्य स्थान के दर्शन करने आते हैं। जन्माष्टमी पर भव्य उत्सव मनाया जाता है। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार माना जाता है कि तीर्थ नगरी अवंतिका में गुरुश्रेष्ठ सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करने आए। भगवान श्रीकृष्ण गुरुमाता की आज्ञा से मित्र सुदामा के साथ गांव नारायणा स्थित वन में ईंधन के लिए लकड़ियां एकत्र करने गए थे। शाम को लौटते समय तेज वर्षा होने लगी। बारिश से बचने के लिए दोनों मित्र एकत्र की गई लकड़ियों का गट्ठर जमीन पर रखकर पेड़ पर चढ़ गए। 

श्रीकृष्ण के लकड़ी के गट्ठर बन गए वृक्ष 

रातभर बारिश होती रही, अगले दिन सुबह मुनि सांदीपनि दोनों बालकों को खोजने जगंल पहुंचे और उन्हें आश्रम लेकर आए। इस दौरान लकड़ियों का गट्ठर जंगल में रह गया। कालांतर में भक्तों ने इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और सुदामाजी का भव्य मंदिर बनवाया। आज भी लकड़ी के दोनों गट्ठर हरे-भरे दिव्य वृक्ष के रूप में मंदिर के दोनों ओर नजर आते हैं। भक्त इनकी पूजा कर परिक्रमा लगाते हैं।

इसीलिए दरिद्र हो गए थे सुदामा  

श्रीमद्भागवत महापुराण के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण व सुदामाजी की मैत्री का उल्लेख मिलता है। यह स्थल उज्जैन जिले की महिदपुर तहसील के गांव नारायणा को बताया जाता है। पांच हजार साल बाद भी लकड़ियों के गट्ठर का मौजूद रहना भगवद् कृपा को दर्शाता है। मान्यता है कि लकड़ियां एकत्रित करने के लिए वन भेजते समय गुरुमाता ने दोनों मित्र (कृष्ण-सुदामा) को खाने के लिए चने दिए थे। बाद में नारायणा गांव में बारिश के दौरान सुदामा ने श्रीकृष्ण के हिस्से के चने भी खा लिए। बताया जाता है कि भगवान के हिस्से का अन्न खाने के कारण ही सुदामा दरिद्र हुए। बाद में कृष्ण द्वारिकाधीश हुए और अपने मित्र की दरिद्रता को दूर किया।

गुरुवार को मनाया जाएगा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व

प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी जन्माष्टमी के पावन पर्व पर श्रीकृष्ण सुदामा की मित्रता के साक्षी श्री नारायणाधाम पर जन्माष्टमी का भव्य आयोजन सात सितंबर 2023 को किया जा रहा है। संयोजक पवन गोयल के अनुसार प्रातःकाल चार बजे पट खुलने के बाद अभिषेक पूजन करके सूर्योदय की बेला में विशेष ध्वजारोहण के उपरान्त महाआरती के साथ ही दर्शन हेतु पट खोल दिए जाएंगे।

खीर प्रसादी का होगा वितरण 

इस अवसर पर संत श्री अभिरामदाम की सप्त दिवसीय भागवत कथा का समापन भी होगा। मंदिर में प्रातःकाल से ही खीर प्रसादी का वितरण निरंतर जारी रहेगा। दोपहर को संत सुश्री अंजलि त्रिवेदी की सुमधुर वाणी में भजन होंगे। दोपहर तीन बजे बाद श्रीकृष्ण जन्म एवं कृष्ण-सुदामा मित्र कथा एवं भजन कीर्तन मध्यरात्रि तक डॉ. शीलेश्वरी देवी (शीला दीदी) के सानिध्य में होंगे।

मध्यरात्रि12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव

मध्यरात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव एवं जन्म आरती होगी। पश्चात प्रसाद वितरण व समिति की ओर से भोजन प्रसादी का आयोजन होगा। जन्माष्टमी पर्व के दिन फलाहारी व खीर प्रसादी का वितरण प्रातः 10 बजे से सायंकाल तक निरंतर किया जाएगा। साथ ही उज्जैन से महर्षि सांदीपनिजी की भव्य रथयात्रा भी 7 सितंबर 2023 को हजारों श्रद्धालुओं के साथ पहुंचेगी। सायंकाल मंदिर परिसर मे रासलीला एवं भजन संध्या का आयोजन किया जावेगा।

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