मंदिर-मस्जिद विवाद और मोहन भागवत

भारत में मंदिर-मस्जिद विवाद लंबे समय से एक ज्वलंत मुद्दा रहा है, जिसने न केवल सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है, बल्कि राजनीतिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी देश को झकझोरा है। यह विवाद धर्म, राजनीति और समाज के संगम पर खड़ा है और समय-समय पर इसकी गूंज हर भारतीय के कानों तक पहुंचती है। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत द्वारा इस विषय पर की गई टिप्पणी ने एक बार फिर इसे चर्चा के केंद्र में ला दिया। आइए इस मुद्दे को गहराई से समझें और इसके समाधान की संभावनाओं पर विचार करें।

साभार: जनसत्ता
  1. प्रस्तावना: विवादों का भारत में सामाजिक प्रभाव

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता हमारी ताकत है। लेकिन जब यह विविधता विवादों का रूप ले लेती है, तो यह सामाजिक एकता को कमजोर करती है। मंदिर-मस्जिद विवाद इसका एक ज्वलंत उदाहरण है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कहा कि ऐसे विवाद देश के माहौल को खराब करते हैं और इन्हें अब बंद होना चाहिए। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली।

2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • बाबरी मस्जिद विवाद:

मंदिर-मस्जिद विवाद का इतिहास बाबरी मस्जिद प्रकरण से जुड़ा है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में हुआ था, और यह कहा जाता है कि इसे राम जन्मभूमि पर बनाया गया। 1949 में इसमें रामलला की मूर्ति स्थापित होने के बाद यह विवाद गहराता गया। 1992 में मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगे देश के इतिहास के काले अध्याय हैं।

  • प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट:

1991 में भारत सरकार ने ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ लागू किया, जिसमें यह तय किया गया कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में थे, उन्हें उसी रूप में बनाए रखा जाएगा। यह कानून सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया था।


3. वर्तमान घटनाक्रम और प्रतिक्रियाएं

  • मोहन भागवत का बयान:

मोहन भागवत ने कहा कि मंदिर-मस्जिद विवाद अब समाप्त होना चाहिए और समाज को आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने की प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए।

  • राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:

भागवत के बयान पर समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस धार्मिक मुद्दों का राजनीतिकरण कर रही हैं। वहीं, शिया धर्मगुरु मौलाना जावेद हैदर जैदी ने भागवत के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि समाज में नफरत फैलाने वाली बातों पर रोक लगनी चाहिए।

  • जबलपुर विवाद:

मध्य प्रदेश के जबलपुर में गायत्री मंदिर की जमीन पर मस्जिद बनाए जाने का मामला सामने आया, जिसे ‘लैंड जिहाद’ करार दिया गया। हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया, जबकि मुस्लिम समुदाय ने इसे पुराना धार्मिक स्थल बताया।

4. सामाजिक ताना-बाना और धार्मिक सद्भाव

  • सांप्रदायिक सौहार्द की आवश्यकता:

भारत की सामाजिक एकता को मजबूत करने के लिए धार्मिक सद्भाव अनिवार्य है। मंदिर-मस्जिद विवाद जैसे मुद्दे समाज को विभाजित करते हैं और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं।

  • मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका:

इन विवादों को बढ़ाने में मीडिया और सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका होती है। अतः जिम्मेदारीपूर्ण रिपोर्टिंग और जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।

5. कानूनी दृष्टिकोण और समाधान के प्रयास

  • सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई:

सुप्रीम कोर्ट में ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ की संवैधानिकता पर सुनवाई हो रही है। इस कानून के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में थे, उन्हें वैसा ही बनाए रखा जाएगा।

  • कानून के पक्ष और विपक्ष:

इस कानून के समर्थकों का कहना है कि यह सांप्रदायिक विवादों को रोकने के लिए जरूरी है, जबकि विरोधियों का मानना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

6. राजनीतिक दृष्टिकोण और भविष्य के लिए सबक

  • धार्मिक मुद्दों का राजनीतिकरण:

मंदिर-मस्जिद विवाद का उपयोग राजनीतिक दल अक्सर अपने लाभ के लिए करते हैं। चुनावों के समय ऐसे मुद्दे प्रमुखता से उभरते हैं, जिससे जनता के असली मुद्दे पीछे छूट जाते हैं।

  • जनता के असली मुद्दे:

शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और बुनियादी ढांचे जैसे असली मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

7. भविष्य की राह: समाधान की संभावनाएं

  • संवाद और जनसहभागिता:

धार्मिक विवादों को सुलझाने के लिए संवाद और जनसहभागिता जरूरी है। सभी समुदायों को एकजुट होकर सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।

  • शिक्षा और जागरूकता:

शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से लोगों को समझाया जा सकता है कि ऐसे विवादों से समाज को नुकसान होता है।

 निष्कर्ष

मंदिर-मस्जिद विवाद भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता के लिए एक चुनौती है। इसे सुलझाने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा। राजनीतिक दलों, धार्मिक संगठनों, और समाज के हर वर्ग को जिम्मेदारी से काम करना होगा। भारत को अपनी विविधता में एकता को बनाए रखते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर होना चाहिए।