22 जनवरी 2024, भारत की धार्मिक आस्था का दिन।

आज ज्येष्ठ मास का पहला बड़ा मंगल है जिसे लखनऊ वासियों द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ बजरंगबलि की पूजा अर्चना करके मनाया जाता है। यहाँ पर सबसे ख़ास बात ये है की लखनऊ के “पुराने अलीगंज मंदिर” जो की बजरंगबली को समर्पित है उसे एक मुस्लिम भक्त द्वारा बनवाया गया था, यहाँ पर प्रतिवर्ष मेला लगता है। जैसा कि सर्वविदित है भारतवर्ष अब भगवान श्रीराम की उपस्थिति में चलायमान है अर्थात राम मंदिर बन गया है और श्रीराम लला बाल रूप में  विराजमान हो गए हैं। मंदिर में निर्माण कार्य अभी चलते रहेंगे और यह भव्य मंदिर भविष्य में अपने बृहद और भव्य रूप को प्राप्त कर लेगा। मुझे वो दौर याद है जब कार सेवकों का मन यह कहते हुए व्यथित हो जाता था कि राम-मंदिर हिन्दुस्तान में नहीं तो फिर कहाँ बनेगा…?, मुझे ये भी याद है जब राजनैतिक पार्टियों द्वारा राम और राम सेतु के वज़ूद पर ही प्रश्न चिन्ह उठाया गया था, परन्तु अब माहौल बदल गया है। वर्तमान में सभी राम-मय होते हुए दिखना चाहते हैं।

इतिहास के पन्नों में झांके तो पाएंगे कि 16वीं शताब्दी में, बाबर ने समस्त उत्तर भारत के कई मंदिरों पर जबरदस्त हमला कर नष्ट कर दिया था। इसी क्रम में भगवान् श्रीराम का मंदिर भी इसी आक्रांता ने तोड़ डाला था और तभी से सनातनी राम मंदिर के पुनः निर्माण के लिए प्रतिबद्धः थे मगर यह कत्तई आसान नहीं था।

सनातनियों ने लगभग 600 वर्षों का संघर्ष झेला जिसकी तपिश में हज़ारों हज़ार रामभक्त शहीद होते रहे। धार्मिक हिंसा की पहली घटना 1853 में दर्ज की गई थी। दिसंबर 1858 में, ब्रिटिश प्रशासन ने राम जन्मस्थली पर हिंदुओं के पूजा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। मस्जिद के बाहर अनुष्ठान आदि आयोजित करने के लिए एक मंच बनाया गया था जिससे हिन्दुओं के मन में एक क्षोभ व्याप्त हो गया था।

22-23 दिसंबर 1949 की दरमियानी रात बाबरी मस्जिद के अंदर राम और सीता की मुर्तियाँ प्रगट हो गईं थीं और अगले दिन से रामभक्त व साधू सन्त इकट्ठा होने लगे तथा ये बात जंगल में आग की तरह पूरे हिंदुस्तान में फ़ैल गई, दर्शन पूजन के लिए लोग लाखों की संख्या में अयोध्या पहुँचाने लगे। 6 दिसंबर 1992 को  कौन भूल सकता है! इसी दिन हज़ारों कार सेवकों ने हँसते – हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थीऔर और श्री राम लला की जन्मस्थली पर बने मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। खुदाई के दौरान मिले मंदिर के अवशेषों को पुरातत्वविदों ने मानीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसे सही माना गया और अंततः मंदिर बनाने की स्वीकृति दे दी गई। धार्मिक सहिष्णुता के मद्देनज़र मुस्लिमों को अयोध्या से दूर धन्नीपुर गाँव में मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित किया गया।

5 अगस्त को मंदिर निर्माण की आधिकारिक आधारशिला स्थापना, पूजन समारोह के बाद राखी गई। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आधारशिला के रूप में 40 किलो चांदी की ईंट की स्थापना नींव के तौर पर हुई। सभी तरह की बाधाओं और अंतर्विरोध को दर किनार करते हुए 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर समस्त धरा के पूजन अर्चन के लिए खोल दिया गया।

“जय श्रीराम” नाम की ही शक्ति है, जिसने सभी राम भक्तों को एकता और आशा के सूत्र में बांधे रखा। राम मंदिर के सपने को मूर्त रूप प्रदान किया गया। किसी ने सच ही कहा है कि राम से ज्यादा उनके नाम में शक्ति है।

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ब्लॉगर के बारे में
सुमित शाही
पूर्व पत्रकार