रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूक्रेन से लौटे भारतीय मेडिकल छात्रों के भविष्य को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं। इन छात्रों की शिक्षा अधूरी रह गई है, और वे अपने करियर को लेकर अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। इस ब्लॉग में, हम इन छात्रों की वर्तमान स्थिति, उनकी चुनौतियाँ, और भारत सरकार द्वारा अब तक उठाए गए कदमों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों की वर्तमान स्थिति
फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद, वहाँ अध्ययनरत हजारों भारतीय मेडिकल छात्रों को स्वदेश लौटना पड़ा। इनमें से अधिकांश छात्रों की शिक्षा अधूरी रह गई, और वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। यूक्रेन में बिकोवेनियन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी के तीसरे वर्ष के छात्र ओम प्रकाश महतो ने कहा, “मैं युद्ध शुरू होते ही फरवरी में ही भारत आ गया था और तब से उलझन में जी रहा हूं कि हमारा क्या होगा? सरकार कुछ भी नहीं बोल रही है।”
इन छात्रों की मुख्य समस्या यह है कि उनकी शिक्षा का माध्यम ऑनलाइन हो गया है, जिसे नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने मान्यता नहीं दी है। इसके अलावा, भारत में निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस यूक्रेन की तुलना में काफी अधिक है, जिससे इन छात्रों के लिए यहाँ शिक्षा जारी रखना आर्थिक रूप से संभव नहीं है। यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए वे 3 से 4 लाख रुपये सालाना फीस देते थे, वहीं भारत में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में यह फीस 6 से 15 लाख रुपये है।
छात्रों की मांगें और चुनौतियाँ
छात्रों की प्रमुख मांग है कि उन्हें भारतीय मेडिकल कॉलेजों में समायोजित किया जाए, ताकि वे अपनी शिक्षा पूरी कर सकें। इसके अलावा, वे चाहते हैं कि उनकी ऑनलाइन पढ़ाई को मान्यता दी जाए और उन्हें क्लिनिकल ऑब्जर्वरशिप का अवसर मिले। मुंबई के किएव मेडिकल यूनिवर्सिटी के चौथे वर्ष के छात्र आशीष यादव ने कहा, “हम चाहते हैं कि यूक्रेन की फीस में ही भारत में हमें एडमिशन दे दें। भारत में 600 मेडिकल कॉलेज हैं और एक कॉलेज में 15-20 स्टूडेंट्स भी लिए जाएं तो हल निकल जाएगा।”
हालांकि, सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है, जिससे छात्रों में निराशा और तनाव बढ़ रहा है। कई छात्रों ने जंतर मंतर, नेशनल मेडिकल कमिशन (NMC) से लेकर रामलीला मैदान में प्रदर्शन किया है, लेकिन अब तक सरकार ने चुप्पी साधी है।
भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों की सहायता के लिए एक वेब पोर्टल बनाया जाएगा, जिससे वे विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए आवेदन कर सकें। इसके अलावा, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि वे यूक्रेन सरकार के संपर्क में हैं, और वहाँ की स्थिति को देखते हुए ऑनलाइन पाठ्यक्रम की पेशकश की जा रही है।
हालांकि, छात्रों का कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई पर्याप्त नहीं है, और उन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है, जो केवल क्लिनिकल सेटिंग में ही संभव है। इसके अलावा, कई देशों ने अपने छात्रों को स्थानीय मेडिकल कॉलेजों में समायोजित किया है, जिससे भारतीय छात्रों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं। लोकसभा समिति ने भी सिफारिश की है कि यूक्रेन से लौटे भारतीय मेडिकल छात्रों को देश के कॉलेजों में समायोजित किया जाए, जिससे हजारों छात्रों को कुछ राहत मिल सके।
निष्कर्ष
यूक्रेन से लौटे भारतीय मेडिकल छात्रों की स्थिति गंभीर है, और उनके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह इन छात्रों की समस्याओं को समझे और उन्हें भारतीय मेडिकल कॉलेजों में समायोजित करने के लिए उचित नीतियाँ बनाए। इसके अलावा, ऑनलाइन शिक्षा को मान्यता देने और क्लिनिकल ऑब्जर्वरशिप के अवसर प्रदान करने से भी छात्रों को राहत मिल सकती है। छात्रों का भविष्य देश की संपत्ति है, और उनकी शिक्षा को जारी रखना राष्ट्रीय हित में है।