दिल्ली में 1984 सिख विरोधी दंगों के आरोपी कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा

1984 के सिख विरोधी दंगे भारतीय इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हैं, जिन्होंने न केवल सिख समुदाय को गहरा आघात पहुंचाया, बल्कि देश की साम्प्रदायिक सद्भावना को भी चुनौती दी। इस त्रासदी के चार दशक बाद, न्याय की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को सरस्वती विहार इलाके में सिख पिता-पुत्र की हत्या के मामले में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह फैसला न केवल पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की उम्मीद जगाता है, बल्कि समाज में कानून और न्याय की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

साभार : Aaj Tak

न्याय की लंबी लड़ाई: सज्जन कुमार पर कानूनी कार्यवाही

सिख विरोधी दंगों के बाद, पीड़ित परिवारों ने न्याय की मांग में लंबी लड़ाई लड़ी। हालांकि, राजनीतिक प्रभाव और साक्ष्यों की कमी के कारण, कई मामलों में न्याय मिलने में देरी हुई। सज्जन कुमार के खिलाफ भी कई मामले दर्ज किए गए, जिनमें से कुछ में उन्हें दोषी ठहराया गया, जबकि कुछ में बरी कर दिया गया।

  1. पालम कॉलोनी मामला (दिल्ली कैंट): इस मामले में, पांच सिखों की हत्या और एक गुरुद्वारे को जलाने का आरोप था। दिल्ली हाईकोर्ट ने 17 दिसंबर 2018 को सज्जन कुमार को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
  2. सुल्तानपुरी मामला: सितंबर 2023 में, राउज एवेन्यू कोर्ट ने सुल्तानपुरी इलाके में तीन सिखों की हत्या के मामले में सबूतों की कमी के चलते सज्जन कुमार को बरी कर दिया।
  3. सरस्वती विहार मामला: 1 नवंबर 1984 को जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या के इस मामले में, 12 फरवरी 2025 को राउज एवेन्यू कोर्ट ने सज्जन कुमार को दोषी ठहराया और 25 फरवरी 2025 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई।

राउज एवेन्यू कोर्ट का फैसला: न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

25 फरवरी 2025 को, विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा ने सरस्वती विहार मामले में सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई। इससे पहले, पीड़ित पक्ष ने सज्जन कुमार के लिए मौत की सजा की मांग की थी, लेकिन अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा दी। यह फैसला उन पीड़ित परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिन्होंने दशकों तक न्याय की प्रतीक्षा की।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

सज्जन कुमार के खिलाफ आए इस फैसले ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। कांग्रेस पार्टी ने इस पर आधिकारिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है, जबकि अन्य राजनीतिक दलों और सिख संगठनों ने इसे न्याय की जीत बताया है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने भी इस फैसले का स्वागत किया है, इसे न्याय प्रणाली की सुदृढ़ता का प्रतीक माना है।

1984 सिख विरोधी दंगों की जांच: एक दीर्घकालिक प्रक्रिया

1984 के दंगों की जांच के लिए विभिन्न आयोगों और समितियों का गठन किया गया। मई 2000 में, न्यायमूर्ति जी.टी. नानावटी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन हुआ, जिसने दंगों की विस्तृत जांच की। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर, कई मामलों में फिर से जांच शुरू हुई और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की गई। हालांकि, न्याय मिलने में देरी और कई मामलों में दोषियों का बरी होना, न्याय प्रणाली की चुनौतियों को उजागर करता है।

निष्कर्ष: न्याय की दिशा में आगे का मार्ग

सज्जन कुमार को सजा सुनाए जाने के बाद, पीड़ित परिवारों में न्याय की उम्मीद जगी है। हालांकि, अभी भी कई मामले हैं जिनमें न्याय की प्रतीक्षा है। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वह सिख दंगों के छह मामलों में बरी हुए आरोपियों के खिलाफ अपील दायर करेगी। यह कदम न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो पीड़ितों को दशकों से प्रतीक्षित न्याय दिलाने में मदद कर सकता है। हालांकि, इस मामले ने यह भी दर्शाया है कि न्याय मिलने में देरी, पीड़ित परिवारों के दर्द को और बढ़ा देती है। अब यह देखना होगा कि सरकार और न्यायपालिका मिलकर 1984 के दंगों से जुड़े बाकी मामलों को कितनी तेजी और प्रभावी तरीके से निपटाते हैं, ताकि न्याय की प्रक्रिया और अधिक मजबूत हो सके।

 

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