रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला है, विशेषकर उन भारतीय छात्रों पर जो यूक्रेन में चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। इस संघर्ष के कारण हजारों भारतीय छात्रों को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर स्वदेश लौटना पड़ा, जिससे उनके शैक्षणिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।इस संघर्ष ने न केवल अंतरराष्ट्रीय संबंधों को पुनः परिभाषित किया है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार, शिक्षा और कूटनीति के क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए हैं। इस ब्लॉग में, हम विस्तार से उन विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेंगे, जिनसे यह युद्ध भारत को प्रभावित कर रहा है।
- युद्ध का पृष्ठभूमि और कारण:
रूस-यूक्रेन संघर्ष की जड़ें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मतभेदों में निहित हैं। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, यूक्रेन एक स्वतंत्र राष्ट्र बना, लेकिन रूस ने हमेशा उसे अपने प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा माना। 2014 में क्रीमिया के रूस द्वारा अधिग्रहण और डोनबास क्षेत्र में संघर्ष ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। 2022 में, यह तनाव पूर्ण युद्ध में परिवर्तित हो गया, जिसने वैश्विक स्थिरता को चुनौती दी।

साभार : जागरण
- वैश्विक प्रभाव:
यह युद्ध केवल क्षेत्रीय संघर्ष तक सीमित नहीं रहा; इसने वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा आपूर्ति, और भू-राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित किया है। पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान उत्पन्न हुआ और ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप, कई देशों को अपनी ऊर्जा नीतियों और आपूर्ति स्रोतों पर पुनर्विचार करना पड़ा।
- भारत पर आर्थिक प्रभाव:
भारत, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है, इस संघर्ष से सीधे प्रभावित हुआ है। तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला है, जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि और व्यापार घाटे में विस्तार हुआ है। इसके अलावा, रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण द्विपक्षीय व्यापार में भी चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। हालांकि, भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखने का प्रयास किया है।
- ऊर्जा सुरक्षा और वैकल्पिक स्रोत:
रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। पारंपरिक आपूर्ति स्रोतों में अस्थिरता के कारण, भारत ने वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश को प्राथमिकता दी है। सौर, पवन और जैव ऊर्जा के क्षेत्र में नई नीतियाँ और परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, ताकि आयात पर निर्भरता कम की जा सके और ऊर्जा आपूर्ति में आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सके।
- कूटनीतिक चुनौतियाँ और संतुलन:
भारत ने रूस और पश्चिमी देशों के बीच संतुलन बनाए रखने की नीति अपनाई है। संयुक्त राष्ट्र में, भारत ने युद्धविराम और संवाद के माध्यम से समाधान की वकालत की है, जबकि रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को भी महत्व दिया है। यह संतुलन बनाना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए आवश्यक है।
- शिक्षा क्षेत्र पर प्रभाव:
यूक्रेन में हजारों भारतीय छात्र, विशेषकर मेडिकल के क्षेत्र में, अध्ययनरत थे। युद्ध के कारण, उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर वापस लौटना पड़ा। इन छात्रों के लिए भारत में समायोजन और उनकी शिक्षा को जारी रखने के लिए सरकार ने विशेष प्रयास किए हैं, लेकिन कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।

साभार : The Indian Express
- रक्षा और सुरक्षा परिदृश्य:
रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक रक्षा और सुरक्षा परिदृश्य को पुनः परिभाषित किया है। भारत, जो अपने रक्षा उपकरणों के लिए रूस पर निर्भर है, ने आपूर्ति श्रृंखला में संभावित व्यवधानों को ध्यान में रखते हुए आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों के तहत, स्वदेशी रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- वैश्विक भू-राजनीति में परिवर्तन:
यह युद्ध वैश्विक शक्ति संतुलन में परिवर्तन का संकेत है। पश्चिमी देशों और रूस के बीच बढ़ते तनाव ने नए गठबंधनों और साझेदारियों को जन्म दिया है। भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के माध्यम से विभिन्न देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखा है, ताकि राष्ट्रीय हितों की रक्षा की जा सके।
- मानवीय संकट और भारत की भूमिका:
युद्ध के परिणामस्वरूप उत्पन्न मानवीय संकट में, भारत ने यूक्रेन और उसके पड़ोसी देशों को मानवीय सहायता प्रदान की है। खाद्य सामग्री, दवाइयाँ और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के माध्यम से, भारत ने अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों को निभाया है।
- भविष्य की दिशा:
रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत को अपनी आंतरिक नीतियों, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सुरक्षा रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है। आने वाले समय में, भारत को वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका को सुदृढ़ करने, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने, और संतुलित कूटनीति के माध्यम से अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की आवश्यकता होगी।
इस प्रकार, रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत के समक्ष कई चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं, लेकिन साथ ही अवसरों के नए द्वार भी खोले हैं। संतुलित और दूरदर्शी नीतियों के माध्यम से, भारत इन चुनौतियों का सामना कर सकता है और वैश्विक परिदृश्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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